Unit-02 Formation of Constituent Assembly
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Unit-02 Formation of Constituent Assembly
भारत सरकार अधिनियम 1935 (Govt of India Act 1935)
- भारत सरकार अधिनियम-1919 में यह प्रावधान किया गया था कि इस अधिनियम से हुई प्रगति की समीक्षा के लिए 10 वर्ष पश्चात एक आयोग गठित किया जायेगा किन्तु द्वैध शासन की असफलता और भारतीयों द्वारा अधिक स्वायत्तता की माँग के मद्देनजर 10 वर्ष के पूर्व ही सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में 7 सदस्यीय आयोग का गठन 8 नवम्बर, 1927 को किया गया।
- आयोग के सभी सदस्य अंग्रेज थे।
- किसी भारतीय को आयोग में शामिल न किये जाने के कारण उसका व्यापक विरोध हुआ।
- कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन ( 1927-अध्यक्षN. अन्सारी) में आयोग के पूर्ण बहिष्कार का निर्णय लिया गया।
- 3 फरवरी 1928 को आयोग मुम्बई पहुँचा तथा 30 जून 1930 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत किया।
- आयोग के विरोध के बावजूद उसकी अनेक बातों को भारत सरकार ने अधिनियम 1935 में स्थान दिया।
- भारत सचिव लार्ड बर्केनहेड ने साइमन कमीशन का विरोध करने वाले नेताओं को सभी दलों द्वारा स्वीकार्य संविधानिक मसविदा तैयार करने की चुनौती दिया, जिसे कांग्रेस ने स्वीकार करते हुए पं. मोतीलाल नेहरु की अध्यक्षता में 10 सदस्यीय नेहरु समिति‘ गठित किया।
- नेहरु समिति ने 10अगस्त 1928 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत किये, जिसे नेहरु रिर्पोट के नाम से जाना जाता है।
- इसकी प्रमुख सिफारिशें
- औपनिवेशिक स्वराज,
- केन्द्र में पूर्ण उत्तरदायी शासन,
- प्रान्तीय स्वतंत्रता, मौलिक अधिकार,
- सर्वोच्च न्यायालय कि तत्काल स्थापना,
- देशी रियासतों को केन्द्र के अधीन लाया जाना,
- सम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली की समाप्ति आदि।
- नेहरु रिपोर्ट के विरोध में जिन्ना ने अपनी 14 सूत्री माँग 29 मार्च 1929 के पेश किया।
- इसके पश्चात ब्रिटेन में 1930 में प्रथम, 1931 में द्वितीय तथा 1932 में तृतीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन, संवैधानिक सुधारों पर विचार हेतु किया गया।
- अंततः ब्रिटिश सरकार ने 1933 में श्वेतपत्र के माध्यम से नये संविधान की रूपरेखा प्रस्तुत किया।
- जिस पर विचार के लिए लाई लिनलिथगों की अध्यक्षता में संयुक्त समिति का गठन किया गया।
- इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर तैयार विधेयक संसद से पास होने के बाद 4 अगस्त 1935 को ब्रिटिश सम्राट की। अनुमति पाकर भारत शासन अधिनियम-1935 बना।
- भारत के लिए तैयार संवैधानिक प्रस्ताओं में यह अन्तिम तथा सबसे बड़ा और जटिल दस्तावेज था।
- इसमें कुल 321 अनुच्छेद, 10 अनुसूचियाँ व 14 भाग थे। वर्तमान भारतीय संविधान पर इस अधिनियम का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा है।
इसके प्रमुख उपबन्ध थे
अखिल भारतीय संघ की स्थापना–
- यह 11 ब्रिटिश प्रान्त, 6 कमिश्नरियों तथा उन देशी रियासतों, जो स्वेच्छा से इसमें शामिल हो, से मिलकर बनना था ।
- ब्रिटिश प्रान्तों के लिए संघ में शामिल होना आवश्यक था। देशी रियासतें संघ में शामिल नहीं हुई।
- अतः यह प्रस्ताव रूप न ले सका।
- अखिल भारतीय संघ अस्तित्व में नहीं आ सका किन्तु 1 अप्रैल 1937 को प्रान्तीय स्वायत्तता लागू कर दी गयी।
केन्द्र में द्वैध शासन–
- 1919 के अधिनियम द्वारा प्रान्तों में स्थापित द्वैध शासन इस अधिनियम द्वारा समाप्त कर दिया गया तथा । उसे केन्द्र में लागू किया गया।
- केन्द्रीय प्रशासन के विषयों को ‘रक्षित‘ तथा ‘हस्तान्तरित‘ में वर्गीकृत किया गया।
- रक्षित विषयों (प्रतिरक्षा, विदेशी, मामले, धार्मिक विषय व जनजाति क्षेत्र आदि) का प्रशासन गवर्नर जनरल अपनी परिषद की सहायता से करता था तथा अपने कार्यों के लिए, भारत सचिव के माध्यम से ब्रिटिश सरकार के प्रति उत्तरदायी था।
- हस्तान्तरिक विषयों का प्रशासन गवर्नर जनरल अपनी मंत्रीपरिषद की सहायता से करता जो विधान सभा के प्रति उत्तरदायी थी।
प्रान्तीय स्वयत्तता–
- ‘प्रान्तों में स्वायत्त शासन की स्थापना’ इस अधिनियम की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी।
- विधि निर्माण हेतु वर्गीकृत केन्द्रीय और प्रान्तीय विषयों में से प्रान्तीय विषयों पर विधि बनाने का अत्यान्तिक अधिकार प्रान्तों को दिया गया तथा उन पर से केन्द्र का नियंत्रण समाप्त कर दिया गया।
- अब प्रान्तों के गवर्नर ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते थे, न कि गवर्नर जनरल के अधीन।
संघीय न्यायालय (Federal Court) की स्थापना–
- यह दिल्ली में स्थित था। इसमें मुख्य न्यायाधीश तथा अधितम 7 अन्य न्यायाधीश हो सकते थे।
- उनकी नियुक्ति सम्राट द्वारा की जाती थी। उसके निर्णय के विरुद्ध अपील प्रिवी कौसिल (Privy council) में की जा सकती थी। 1
- अक्टूबर 1937 से यह न्यायालय कार्यरत हो गया।
- इसके प्रथम मुख्य न्यायाधीश सर मौरिस ग्वेयर थे।
शक्तियों का विभाजन–
- 1935 के अधिनियम द्वारा केन्द्र एवं प्रान्तों के मध्य शक्तियों का विभाजन तीन सूचियों में
- यथा-
- संघ सूची ( 59-विषय)
- प्रान्तीय सूची (54 विषय) तथा
- समवर्ती सूची ( 36 विषय ) में किया गया था।
- अवशिष्ट विषयों सहित कुछ आपातकालीन अधिकार वायसराय को सौंपा गया था।
प्रान्तों में विधान सभा
- 11 प्रान्तों में विधान सभा का गठन किया गया।
- 6 प्रान्तों में द्विसदनीय विधान मण्डल की स्थापना की गयी।
- उच्च सदन, विधान परिषद (Upper House -> Legislative Council)एक स्थाई सदन था। निम्न सदन विधान सभा (Lower House -> Legislative Council) थी।
Separate Electorate in Union & Provience Execute
- संघीय तथा प्रान्तीय व्यवस्थापिकाओं में ‘साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार कर उसमें आँग्ल भारतीयों, ईसाइयों, यूरोपियों एवं हरिजनों को भी शामिल कर दिया गया।
- इस अधिनियम द्वारा भारत परिषद का अन्त कर दिया गया।
Burma & Aden Separate from India
- इस अधिनियम द्वारा 1935 ई. में वर्मा को भारत से अलग कर दिया गया।
Election in the Provincial Legislative Assembly
- 1937 का विधान सभा चुनाव इस अधिनियम के लागू होने के परिणाम स्वरूप हुआ
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प्रान्तीय विधान मण्डलों के चुनाव
- भारत शासन अधिनियम, 1935 के अधीन फरवरी, 1937 में 11 प्रान्तों में प्रान्तीय विधान मण्डलों के चुनाव कराये गये।
- चुनाव में कांग्रेस को भारी सफलता प्राप्त हुई और उसने 6 प्रान्तों ( मद्रास, बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रान्त, संयुक्त प्रान्त और मुम्बई ) में अपनी सरकार बनायी।
- पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त एवं असम में भी कांग्रेस ने मिली–जुली सरकार बनायी।
- कुल तीन प्रान्तों (पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त, असम तथा सिन्ध) में मिली जुली सरकार गठित की गयी थी।
- पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी तथा बंगाल में कृषक प्रजा पार्टी की सरकार का गठित हुई थी।
- 1937 में संपन्न प्रांतीय विधान सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश (संयुक्त प्रांत) के कुल 228 में से 134 स्थानों पर कांग्रेस को सफलता मिली थी। संयुक्त प्रांत में कांग्रेस ने अकेले सरकार बनाई।
- इस सरकार में मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत एवं विधि तथा न्याय मंत्री के एन काटजू थे जबकि वित्त मंत्रालय रफी अहमद किदवई को दिया गया था।
1937 के चुनाब के आधार पर सरकार का गठन
Sr no. | प्रान्त | मुख्यमंत्री | दल |
(1) | मद्रास | सी. राजगोपालाचारी | कांग्रेस |
(2) | बम्बई | बी.जी. खरे | कांग्रेस |
(3) | मध्य प्रान्त | एन. बी. खरे तथा बरार (बाद में | कांग्रेस |
(4) | बिहार | डा. श्रीकृष्ण सिन्हा | कांग्रेस |
(5) | संयुक्त प्रान्त (उत्तर प्रदेश) | गोविन्द बल्लभ पन्त | कांग्रेस |
(6) | उड़ीसा | बी.एन. दास | कांग्रेस |
(7) | उत्तर पश्चिम सीमा प्रान्त | डा. खान साहब | मिली जुली सरकार |
(8) | सिन्ध | अल्लाह बख्श (बाद में बन्दे अलीखा खान) | मुस्लिम लीग |
(9) | असम | सादुल्लाह (बाद में गोपीनाथ बारदोलई) | मिली जुली सरकार |
(10) | पंजाब | सिकन्दर हयात खान | यूनियनिस्ट पार्टी |
(11) | बंगाल | फजुलुल हक | मुस्लिम लीग और कृषक प्रज्ञा पार्टी |
- लगभग 28 माह तक शासन में रहने के बाद अक्टूबर 1939 में कांग्रेस मंत्रिमण्डल ने 8 प्रान्तों में निम्न दो कारणों से सामूहिक त्यागपत्र दे दिया-.
- (i) बिना कांग्रेस की सहमति के भारत को द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल किया गया था, तथा
- (ii) कांग्रेस के युद्ध के उद्देश्य की घोषणा तथा युद्धोपरान्त भारत की स्वतन्त्रता की माँग की उपेक्षा की गयी थी।
मुक्ति दिवस’
- कांग्रेस मंत्रिमण्डल द्वारा त्यागपत्र दिये जाने के पश्चात मुश्लिम लीग ने 22 दिसम्बर 1939 को ‘मुक्ति दिवस‘ के रूप में मनाया।
- इसमें उसका साथ डा. अम्बेडकर ने भी दिया था।
अगस्त प्रस्ताव (8 अगस्त 1940)
- कांग्रेस मंत्रिमण्डल के त्यागपत्र से उत्पन्न संवैधानिक संकट तथा युद्ध में भारत के सहयोग की आवश्यकतावश ब्रिटिश सरकार ने लार्ड लिनलिथगो (वायसराय) के माध्यम से 8 अगस्त 1940 को एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया। जिसे अगस्त प्रस्ताव‘ कहा जाता है।
- इसमें कहा गया कि भारत का संविधान बनाना भारतीयों का अपना अधिकार है, और युद्ध की समाप्ति पर भारत में औपनिवेशिक स्वराज स्थापित किया जायेगा।
- कांग्रेस तथा मुश्लिम लीग दोनों ने इस पर असंतोष व्यक्त किया।
‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’
- कांग्रेस ने अगस्त प्रस्ताव के विरोध तथा युद्ध से अपने को अलग साबित करने के लिए ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह‘ आरम्भ किया। इस विचारधारा के पोषक गाँधी जी थे।
- व्यक्तिगत सत्याग्रह 17 अक्टूबर 1940 को पवनार आश्रम (महाराष्ट्र) से शुरू किया गया।
- इसके प्रथम सत्याग्रही आचार्य विनोवा भावे तथा दूसरे सत्याग्रही जवाहर लाल नेहरु थे।
- इस आन्दोलन को ‘दिल्ली चलो‘ आन्दोलन भी कहा जाता हैं।
क्रिप्स मिशन 1942
- भारतीयों द्वारा अपनी स्वतन्त्रता के लिए लगातार लड़ी जा रही लड़ाई तथा द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की बढ़ती हुई शक्ति ने अन्तर्राष्ट्रीय जगत का ध्यान भारत की ओर आकृष्ट किया।
- अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया व चीन ने भारत को स्वतन्त्र करने के लिए ब्रिटेन पर दबाव डाला।
- अब ब्रिटिश सरकार को यह विश्वास हो गया कि भारतीयों की मांग को और टाला नहीं जा सकता। अतः तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विस्टन चर्चिल ने, युद्ध मंत्रिमंडल के सदस्य सर स्टेफोर्ड क्रिप्स को मार्च 1942 में भारतीय नेताओं से वार्ता हेतु भारत भेजा।
- क्रिप्स ने यह प्रस्ताव किया कि युद्धोपरान्त नये संविधान की रचना के लिए निर्वाचित संविधान सभा का गठन किया जायेगा। भारत को उपनिवेश का दर्जा दिया जायेगा।
- प्रान्तों को संविधान को स्वीकार करने या अपने लिए अलग संविधान निर्माण की स्वतन्त्रता होगी।
- मुस्लिम लीग ने इस प्रस्ताव को इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि देश का साम्प्रदायिक आधार पर विभाजन की उसकी माँग नामंजूर कर दी गयी थी।
- कांग्रेस ने प्रस्ताव का विरोध इसलिए किया क्योंकि उसमें भारत को टुकड़ों में बाँटने की सम्भावनाओं के द्वार खोल दिये गये थे।
- गाँधी जी ने प्रस्ताव का ‘बाद की तिथि का चेक (Post dated cheque)’ कहकर आलोचना किया।
- गाँधी जी के शब्दों में कुछ और शब्द जोड़ते हुए पं. जवाहर लाल नेहरु ने इस प्रस्ताव को एक ‘टूटते हुए बैक के नाम उत्तरदिनांकित चेक’ (Post-dated Cheque upon a Crashing Bank) की संज्ञा दिया।
भारत छोड़ो का प्रस्ताव/ ‘अगस्त क्रान्ति’ (8 अगस्त 1942)
- क्रिप्स मिशन की विफलता के पश्चात कांग्रेस को यह विश्वास हो गया कि ब्रिटिश सरकार से किसी प्रकार की आशा करना व्यर्थ है।
- अतः 14 जुलाई 1942 को वर्धा में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में अंग्रेजों भारत छोड़ो‘ का प्रस्ताव पारित किया गया।
- इस प्रस्ताव का अनुमोदन 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की मुम्बई के प्रसिद्ध ग्वालिया टैंक मैदान पर मौलाना अबुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में हुए अधिवेशन में किया गया, और गाँधी जी ने ‘करो या मरो‘ का नारा दिया।
- आन्दोलन की शुरूआत 9 अगस्त 1942 को हुई। इसे ‘अगस्त क्रान्ति‘ भी कहा जाता है।*
- अक्टूबर 1943 में लार्ड लिनलिथगो के स्थान पर लार्ड वेवेल को भारत का वायसराय बनाया गया।
वेवेल योजना (The Wavell Plan) 4 जून 1945
- वेवेल ने भारत में संवैधानिक गतिरोध दूर करने तथा अनुकूल वातावरण तैयार करने के लिए एक विस्तृत योजना 4 जून 1945 को प्रस्तुत किया, जिसे वेवेल योजना (The Wavell Plan) कहा जाता है।
- इसकी प्रमुख बातें अधोलिखित प्रकार से थीं। यथा
- केन्द्र में नयी कार्यकारिणी परिषद का गठन किया जायेगा। परिषद में वायसराय तथा सैन्य प्रमुख के अतिरिक्त शेष सभी सदस्य भारतीय होगें और प्रतिरक्षा विभाग वायसराय के अधीन होगा।
- कार्यकारिणी में मुस्लिम सदस्यों की संख्या हिन्दुओं के बराबर होगी।
- कार्यकारणी परिषद एक अंतरिम राष्ट्रीय सरकार के समान होगी। गवर्नर जनरल बिना कारण वीटो शक्ति (Veto Power) का प्रयोग नहीं करेगा।
- द्वितीय विश्व युद्धोपरान्त भारतीय स्वयं अपना संविधान बनायेंगे।
- भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान निरुद्ध सभी नेताओं को रिहा किया जायेगा और शिमला में एक सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया जायेगा।
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