Soils of Uttar Pradesh
Chapter-04 Soils of Uttar Pradesh
उत्तर प्रदेश की मिट्टियां
उ.प्र. की मिट्टियां
- मृदा या मिट्टी पृथ्वी की ऊपरी सतह पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की ऊपरी परत है, जो चट्टानों के विखंडन एवं वियोजन तथा वनस्पतियों के अवसादों के योग से बनती है।
- किसी भी क्षेत्र की मृदाएं पैतृक पदार्थ (चट्टान), जलवायु दशाएं (वर्षा, तापमान), ढाल की तीव्रता, वनस्पति और समय (दीर्घकालिक, अल्पकालिक) पर निर्भर करती हैं।
- उ.प्र. की मिट्टियों को प्रो. वाडिया, कृष्णन एवं मुखर्जी के वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर दो भागों में विभाजित किया जाता है-
- (i) गंगा के विशाल मैदान की नूतन और उप-नूतन मिट्टियां तथा
- (ii) दक्षिण पठार की प्राचीन रवेदार और विंध्यन शैलीय या बुंदेलखंडीय मिट्टियां।
गंगा के विशाल मैदान की मृदाएं
- इस क्षेत्र की लगभग सम्पूर्ण मृदा को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है
- (i) बांगर या पुरानी जलोढ़ मृदा
- (ii) खादर या नवीन जलोढ़ मृदा Alluvial soil
Alluvial Soil दोमट या जलोढ़ मिट्टी
- जलोढ़ मृदाएं (Alluvial Soils) देश के 40 प्रतिशत भागों के लगभग 15 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत है।
- यह मिट्टी पंजाब से असम तक के विशाल मैदानी भागों के साथ-साथ नर्मदा, ताप्ती, महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी घाटियों में फैली हुई है।
- इनका निर्माण हिमालय तथा प्रायद्वीप से प्राप्त मालवा तथा अपसारी सागर द्वारा छोड़े गए गाद द्वारा हुआ है।
- इनका रंग हल्के धूसर से भस्मी धूसर के बीच और गठन (Texture) रेतीली से गाढ़ी दोमट के बीच पाया जाता है।
- दोमट मिट्टी में पोटाश, फॉस्फोरिक एसिड, चूना और जैव पदार्थों की प्रचुरता पाई जाती है
- परंतु इनमें नाइट्रोजन और ह्यूमस (Hummus) की कमी होती है।
- फलीदार फसलों की खेती से इनमें तेजी से नाइट्रोजन का स्थिरीकरण संभव है।
- ये मिट्टियां सिंचाई हेतु सर्वोपयुक्त हैं, जिनकी मदद से इनमें चावल, गेहूँ, गन्ना, जूट, कपास, मक्का, तिलहन, फल और शाकसब्जियों की खेती की जाती है।
- सामान्यतः दोमट मिट्टी (Loam Soil) में 40% बालू के कण 40% मृत्तिका (Clay) कण, एवं 20% गाद (पांशु कण-Silt) के कण पाए जाते हैं।
- बलुई दोमट मिट्टी (Alluvial Sand Soil) की जलधारण क्षमता सबसे कम होती है, क्योंकि इसमें रवे भारी मात्रा में एवं बड़े होते हैं।
- जलोढ़ मिट्टियों को दो उपवर्गों में विभाजित किया जाता है
1. नवीन जलोढ़ या खादर (Khadar)-
- इन मिट्टियों का विस्तार नदी के बाढ़ के मैदानी क्षेत्र में पाया जाता है, जहां प्रतिवर्ष बाढ़ के दौरान मिट्टी की नवीन परत का जमाव होता रहता है।
- इस मिट्टी की जलधारण क्षमता अधिक होती है। यह मिट्टी सदैव उर्वर बनी रहती है।
2. प्राचीन जलोढ़ या बांगर (Bangar)-
- बांगर मिट्टी की स्थिति बाढ़ की पहुंच से दूर कुछ ऊंचाई पर होती है।
- यहां मिट्टी का रंग गहरा (पीला रक्ताभ भूरा-Pale reddish brown) पाया जाता है। जिसमें चूनेदार कंकड़ के पिंड (Nodules) अधिक पाए जाते हैं।
- बांगर मिट्टियों पर लवणीय और क्षारीय प्रस्फुटन के कारण रेह (reh) का जमाव मिलता है।
- यह मिट्टी कम उर्वर होती है इसमें नियमित उर्वरकों की आवश्यकता होती है।
3. भाबर (Bhabar)-
- शिवालिक के गिरिपदीय क्षेत्र में जलोढ़ पंख पाए जाते हैं जिनकी मिट्टी स्थूल और गुटिकायुक्त होती है।
- इसे भाबर कहा जाता है। भाबर के दक्षिण दलदली और गाढ़ी मिट्टी वाले क्षेत्र को तराई (Tarai) कहा जाता है।
- यहां की मिट्टी में नाइट्रोजन और जैविक पदार्थों की प्रचुरता और फॉस्फेट की कमी पाई जाती है। यहां के ऊंचाई भागों में प्राप्त प्राचीन जलोढ़ को राढ़ (Rarh) नाम से जाना जाता है।
लाल एवं काली मिश्रित मिट्टी
- लाल एवं काली मिश्रित मिट्टी राज्य के झांसी डिवीजन, मिर्जापुर, सोनभद्र के साथ-साथ प्रयागराज जिले के करछना और मेजा तहसील में पाई जाती है।
- इन जिलों के ऊपरी पठारी भाग में मिट्टी लाल है एवं दो प्रकार की है- परवा और राकड़।
- परवा हल्की रेतीली या रेतीली दोमट है, जबकि राकड़ क्षारीय है।
भाबर Bhabar
- भाबर पर्वतपदीय क्षेत्र है, यहां की मिट्टी मोटी बालुओं तथा कंकड़ और पत्थरों से निर्मित बहुत छिछली है। इस क्षेत्र में नदियां लुप्त हो जाती हैं।
तराई क्षेत्र
- भाबर के समानांतर निचले भाग में तराई क्षेत्र विस्तारित है। यहां की मृदा उपजाऊ, नम, दलदली और समतल है।
- इस मृदा में गन्ना एवं धान की अच्छी पैदावार होती है।
- उ.प्र. के गंगा-यमुना दोआब एवं गंगा-रामगंगा दोआब क्षेत्रों में जलोढ़ एवं कॉप मिट्टी का विस्तार है।
- उ.प्र. में जलोढ़ एवं दोमट मिट्टी alluvial and loamy soil सर्वाधिक क्षेत्र पर पाई जाती है।
- उ.प्र. में दोमट एवं बलुई मिट्टी loamy and sandy soil को क्षेत्रीय भाषा में सिक्टा, करियाल एवं धनका भी कहते हैं।
- इस क्षेत्र में बांगर मिट्टी ऊंचे मैदानी भागों में पाई जाती है जहां बाढ़ के समय नदियों का जल नहीं पहुंच पाता है।
भूड़
- गंगा-यमुना तथा उनकी सहायक नदियों के बाढ़ वाले क्षेत्रों में प्लाइस्टोसीन युग में निर्मित बलुई मिट्टी के 10-12 फीट ऊंचे टीलों को भूड़ कहते हैं।
- भूड़ हल्की दोमट एवं मिश्रित बलुई मिट्टी होती है।
बुंदेलखंडीय मृदा
- उ.प्र. के दक्षिणी पठार की मिट्टियों को बुंदेलखंडीय मिट्टी कहते हैं।
- इस क्षेत्र में भोंटा, माड (मार), कावड़, पडवा (परवा), राकड़ आदि मिट्टियां पायी जाती हैं।
- इस क्षेत्र की काली मृदा को करेल, कपास अथवा रेगुर आदि नामों से भी जाना जाता है।
- प्रदेश के जालौन, झांसी, ललितपुर और हमीरपुर जिलों में काली मृदा का विस्तार होने के कारण चना, गेहूं, अरहर एवं तिलहन प्रमुख उपजें हैं।
भोंटा मिट्टी
- भोंटा मिट्टी विंध्य पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है।
माड (मार) मिट्टी
- माड (मार) मिट्टी, काली मिट्टी या रेगुर मिट्टी के समान चिकनी होती है।
- माड (मार) मिट्टी में सिलिकेट, लोहा एवं एल्युमीनियम खनिज पदार्थ पाए जाते हैं।
मांट मिट्टी
- मांट मिट्टी उ.प्र. के पूर्वी क्षेत्रों में पाई जाती है।
- इस मिट्टी में चूना अधिक होता है।
पड़वा मिट्टी
- पड़वा मिट्टी उ.प्र. के हमीरपुर, जालौन और यमुना नदी के ऊपरी जिलों में पाई जाती है।
- पड़वा मिट्टी हल्के लाल रंग की होती है।
राकड़ मिट्टी
- राकड़ मिट्टी उ.प्र. के दक्षिण पर्वतीय एवं पठारी ढलानों पर पाई जाने वाली मिट्टी है।
लाल मिट्टी
- लाल मिट्टी उ.प्र. के मिर्जापुर, सोनभद्र जिलों में पाई जाती है।
- लाल मिट्टी का निर्माण बालूमय लाल शैलों के अपक्षय से हुआ है।
- लाल मिट्टी का विस्तार बेतवा एवं धसान नदियों के जलप्लावित क्षेत्रों में भी पाया जाता है।
- लाल मिट्टी में नाइट्रोजन, जीवांश, फॉस्फोरस एवं चूना खनिजों की कमी पाई जाती है।
- लाल मिट्टी में गेहूं, चना एवं दलहन आदि फसलें उगाई जाती हैं।
ऊसर एवं रेह मिट्टी
- ऊसर एवं रेह मिट्टी उ.प्र. के अलीगढ़, मैनपुरी, कानपुर, सीतापुर, उन्नाव, एटा, इटावा, रायबरेली एवं लखनऊ जिलों में पाई जाती है तथा ये लवण (Salt) से प्रभावित हैं।
- रेहयुक्त क्षारीय ऊसर भूमि का उत्तर प्रदेश में अधिक विस्तार है।
बंजर तथा भाट नामक मृदा
- बंजर तथा भाट नामक मृदा उ.प्र. के गोरखपुर, बस्ती, महराजगंज, कशीनगर, सिद्धार्थ नगर एवं गोंडा जिलों में पाई जाती है।
बंजर मिट्टी
- बंजर मिट्टी चिकनी और बलुई चिकनी दोनों प्रकार की होती है, । इसमें चूना अपेक्षाकृत कम होता है।
ढूंह
- जलप्लावित नदी के किनारे पाई जाने वाली मिट्टी को उ.प्र. में ढूंह के नाम से जाना जाता है।
भाट
- उत्तर प्रदेश के उत्तर-पूर्व में स्थित कुशीनगर जिले की मिट्टी को स्थानीय भाषा में ‘भाट‘ कहा जाता है।
- इस मिट्टी में मोटे अनाज वाली फसलें उगाई जाती हैं।
टर्शियरी मिट्टी
- टर्शियरी मिट्टी उ.प्र. में शिवालिक पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है।
-
यह मिट्टी चाय की खेती के लिए उपयुक्त है।
कमी पाई जाती है।
- उ.प्र. के उत्तर-पश्चिम भाग की मिट्टी में फॉस्फेट खनिज की कमी पाई जाती है।
- उ.प्र. के जौनपुर, आजमगढ़ तथा मऊ जनपदों की मृदा में पोटाश की कमी पाई जाती है।
मृदा अपरदन –
- जल बहाव अथवा वायु के वेग अथवा हिम के पिघलने से एक स्थान की मिट्टी का अन्यत्र स्थान पर चला जाना मृदा अपरदन कहलाता है।
- उत्तर प्रदेश में वायु अपरदन प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों में एवं जलीय अपरदन पूर्वी एवं दक्षिणी क्षेत्रों में अधिक होता है।
- चम्बल नदी अधिग्रहण क्षेत्र में अवनालिका अपरदन (Gully Erosion) सर्वाधिक होता है, जिससे उ.प्र. का इटावा जिला विशेष रूप से प्रभावित है।
- इसके कारण ही आगरा, इटावा और जालौन जिलों में बीहड़ पाए जाते हैं।
- उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र में अवनालिका अपरदन, दक्षिणी क्षेत्र में रिल अपरदन (Rill Erosion) तथा पूर्वी एवं उत्तरी क्षेत्र में परत अपरदन (Sheet Erosion) विशेष रूप से प्रभावी है।
- उत्तर प्रदेश में मृदा अपरदन के मुख्य कारण मानसून वर्षा की प्रकृति, वनों का अभाव तथा ढाल की तीव्रता आदि हैं।
- वायु अपरदन से उ.प्र. के सर्वाधिक प्रभावित जिले मथुरा एवं आगरा हैं।
- जलीय अपरदन से उ.प्र. का सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र हिमालय का तराई प्रदेश है।
- प्रदेश के अलीगढ़, मैनपुरी, कानपुर, उन्नाव, एटा, इटावा, रायबरेली, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, जौनपुर और प्रयागराज जिलों में अधिक सिंचाई एवं उर्वरकों के इस्तेमाल से लगभग 10 प्रतिशत भूमि ऊसर हो चुकी है।
- प्रदेश के पश्चिमी एवं दक्षिणी क्षेत्रों में लवणीय या क्षारीय मृदा पाई जाती है, जबकि प्रदेश के पूर्वी क्षेत्रों (तराई भागों में) के कुछ हिस्सों में अम्लीय मृदा पाई जाती है।
उत्तर प्रदेश की प्रमुख मिट्टियां
- (1) पर्वतपदीय मृदाएं
- (2) तराई मृदाएं
- (3) जलोढ़ मृदाएं
- (4) लाल और पीली मृदाएं
- (5) मिश्रित लाल एवं काली मृदाएं
- (6) मध्यम काली मृदाएं
- (7) कैल्शियम युक्त मृदाएं
- (8) लवण प्रभावित मृदाएं
- (9) लाल बलुई मृदाएं
भारत का बंजर भूमि एटलस, 2019 : उ.प्र. की स्थिति
- उत्तर प्रदेश में बंजर भूमि, वर्ष 2008-09 के 9619.35 वर्ग किमी. (देश का 3.99% भौगोलिक क्षेत्र) से कम होकर वर्ष 2015-16 में 8537.06 वर्ग किमी. (देश का 3.54% भौगोलिक क्षेत्र) हो गई है।
- उपर्युक्त अवधि में राज्य में बंजर भूमि में 1082.29 वर्ग किमी. की कमी आई है।
- प्रदेश में 988.36 वर्ग किमी. बंजर भूमि को कृषि भूमि में परिवर्तित किया गया है, जबकि 89.09 वर्ग किमी. बंजर भूमि को जल निकाय के रूप में परिवर्तित किया गया है।
- हरदोई जिले में 79.25 वर्ग किमी. तथा कानपुर देहात में 72.19 वर्ग किमी. बंजर भूमि में कमी आई है।
- बलिया जिले में 32.01 वर्ग किमी एवं महराजगंज में 1.83 वर्ग किमी. बंजर भूमि में वृद्धि हुई है।
- प्रदेश में झांसी जिले में सर्वाधिक बंजर भूमि (445.36 वर्ग किमी.) है। इसके पश्चात आगरा (426.74 वर्ग किमी.) का स्थान है।
- प्रदेश में लगभग 2129.61 वर्ग किमी. क्षेत्र लवणता/क्षारीयता से प्रभावित है।
- लवणता/क्षारीयता से प्रभावित मिट्टियां मुख्यतः रायबरेली, औरैया, आजमगढ़, एटा, फतेहपुर, हरदोई, जौनपुर, कन्नौज, कानपुर देहात, लखनऊ, मैनपुरी, उन्नाव में है।
- सर्वाधिक लवणीय/क्षारीय मृदा रायबरेली जिले में है।