महत्वपूर्ण मुहावरे Part-03 For UPSC & UPPSC
UPSC & UPPSC
Hindi Paper महत्वपूर्ण मुहावरे
In UPSC: – 10 number out of 300 (Less Importance) (Qualifying Paper)
In UPPSC: – 30 marks out of 150 (Very Important) (Merit to Count)
ख
- खेत हाथ रहना —(युद्ध में जीतना) – महाभारत के युद्ध में खेत पाण्डवों के हाथ में रहा।
- खरी-खोटी सुनाना —–(भला-बुरा कहना) – पुस्तक खो जाने के कारण उसने मुझे खूब खरी खोटी सुनाई।
- खाक छानना —–(भटकते फिरना) – बेटी अनामिका की तलाश में मैं तीन दिनों से इस शहर की खाक छान रहा हैं।
- खाक में मिलाना —-(नष्ट कर देना) – इस नालायक लड़के ने उस कलमुँही से शादी करके मेरी इज्जत खाक में मिला दिया है।
- खून बहाना —-(मार-काट करना) —– जलियांवाला बाग में अंग्रेजी सेना ने खूब खून बहाया था।
- खटाई में पड़ना —–(कुछ निर्णय न हो सकना) – पैसे की कमी के कारण ग्राम सुधार की योजना खटाई में पड़ गयी हैं।
- खेत रहना —-(संग्राम में मारा जाना) – कारगिल युद्ध में पाकिस्तान के अनेको घुसपैठिये खेत रहे।
- खेलना-खाना —-(आनन्द से जीवन बिताना) – अभी तो तुम खूब खेलो खाओ तुम्हारी उम्र ही क्या है?
- खप जाना —–(सब काम में आ जाना) – फैक्टरी में पूरा का पूरा, कच्चा माल खप गया।
- खार खाना —–(गाँत में देष बाँधना, चिढ़ जाना) – मेरा और उसका काम अलग-अलग है फिर भी न जाने क्यों आज कल वह मुझसे खार खाये रहता है।
- खिल्लियाँ उड़ाना —-(उपहास करना, हँसी उड़ाना) — परीक्षाफल में असफल घोषित होने पर मित्रों ने उसकी खूब खिल्ली उड़ाई।
- खुल पड़ना —(साफ-साफ कह डालना, प्रकट हो जाना) – आजकल ऐसे बहुत ही कम लोग हैं जो कि एक दम से खुल पड़ते हों।
- खुले आम —–(सब सामने) – उसने आज खुले आम रमेश को गाली दी।
- खून सवार होना —-(मरने-मारने को तैयार हो जाना) – बहन के बलात्कार की घटना ने उसके अन्दर तूफान खड़ा कर दिया। अभियुक्तों के विरुद्ध बदले की भावना व आक्रोश के कारण अब उसके सिर पर खून सवार है।
- खूनी हाथ —(हत्यारे के हाथ) – उमाकान्त की हत्या करने के बाद उसके हाथ खूनी हो गये।
- खून के पूँट पीना —-(अपमान सहना) – ससुराल में अपने माँ बाप के विषय में अपमान जनक बातें सुनकर विनिता पूँट पीकर रह गयी।
- खून खौलना —-(उत्तेजित होना) – उसकी बदतमीजी देखकर जवानों का खून खौलने लगा।
- खून सूख जाना —(भयभीत हो जाना) – निस्तब्ध रात्रि में गोली की अवाज सुनकर मोहल्ले वालों का खून सूख गया।
- खयाली पुलाव पकाना —-(मनमानी कल्पनाएँ करना) – साधन तो है नहीं योजना बनाते रहते हो। ऐसे खयाली पुलाव पकाने से क्या लाभ ?
- खुशामदी टटू —(मुँह पर बड़ाई करने वाला) – बहुत से अधिकारी खुशामदी टट्टओं से ही प्रसन्न रहते हैं।
- खाकर डकार नहीं लेना —-(हजम कर जाना) – कुछ अफसर राजस्व का लाखों रुपये खाकर भी डकार नहीं लेते।
- खबर लेना —(सजा देना) – पाठ याद न करने के कारण आज उसकी अच्छी खबर ली गयी।
- खिल उठना –(प्रसन्न होना) – बच्चों को आंगन में खेलते देख दादी माँ का दिल खिल उठता है।
- खटपट होना —(झगड़ा होना) – आज रात यूँ ही किसी बात पर पति पत्नी में खट पट हो गयी।
- खरी-खरी सुनाना —(कटु सत्य कहना) – मोहन की गलतफहमी दूर करने के लिए मैंने खरी-खरी सुना दिया।
- खरा-खोटा परखना —-(भले-बुरे की पहचान करना) – लालू बुद्ध है, उसको खरे-खोटे की पहचान नहीं है।
- खा-पका डालना —-(खतम कर देना) – दिल्ली जाते समय मैं यहाँ ढेर सारा सामान छोड़ गया था और तुमने सिर्फ दो दिन में ही सब कुछ खा-पका डाला।
- खाली हाथ —-(बिना रुपये पैसे या हथियार के) – बेरोजगारी के दिनों में रिश्ते-नातेदारों के यहाँ तो खाली हाथ ही जाना पड़ता है।
- खाल खींचना —-(बहुत पीटना) – गुंडों ने उसे पकड़कर आज पूरी तरह से उसकी खाल खींच ली।
- खून ठंढा होना —(जोश (क्रोध) कम हो जाना] —– कुछ समय बाद उससे बात कीजिएगा, जब उसका खून ठंढा हो जाय।
- खून आँखों से उतरना —-(क्रोध से आँख–मुँह लाल होना) – तुम्हारी अनर्गल बातों से उसकी आँखों में खून उतर आया।
- खोपड़ी खाना —–(बकवास करना) – अब कुछ काम करो और मुझे भी काम करने दो। तीन घंटे से खोपड़ी खा रहे हो।
- खोपड़ी गंजी करना —-(मारकर खोपड़ी के बाल उड़ा देना अर्थात् खूब पिटाई करना) – आज बाजार में कुछ लोगों ने एक लुटेरे को मार मारकर उसकी खोपड़ी गंजी कर दी।
- खेल बिगाड़ना —-(काम बिगड़ना) – आपने यहाँ पहुँचकर बना बनाया खेल बिगाड़ दिया।
- बँटे के बल कूदना —-(कोई सहारा मिलने पर अकड़ना) – तुम जिस बँटे के बल कूद रहे हो, उसे भी मैं समझ लूंगा।
- खेल खेलाना —-(परेशान करना) – हफ्तों से तुम्हारे ही चक्कर लगा रहा हूँ, कब तक खेल-खेलाते रहोगे।
- खिचड़ी पकाना —-(अंदर-अंदर षड्यन्त्र रचना) – पता लगाओ कि इस चुनाव में मेरे विरोधी क्या खिचड़ी पका रहे हैं।
- खुले हाथ —-(उदारता से) – सेठ जमुनादास धार्मिक कार्यों हेतु खुले हाथ दान देते हैं।
- खून-पसीना एक करना —-(कड़ी मेहनत करना) — प्रायः देखा गया है कि लोग खून-पसीना एक करके कमाते हैं, बेटे सब नष्ट कर देते हैं।
- खून सफेद हो जाना —-(दया, मोह न रह जाना) —- आजकल की घटनाओं को सुनकर ऐसा लगता है कि पुलिस वालों का खून सफेद हो गया है।
- खीसे निपोरना —(गिड़गिड़ाकर माफी माँगना, लज्जा का भाव प्रकट करते हुए दाँत दिखाना) — कायर व्यक्ति टेढ़ी नजर देखते ही खीसे निपोर देते हैं।
- खटाई में पड़ना —-(व्यवधान पड़ना) – जब तक जितेन्द्र नारायण जी नहीं आयेंगे, मेरी नौकरी का मामला खटाई में पड़ा रहेगा।
- खाने को दौड़ना —–(एक दम क्रुद्ध हो जाना) – मैंने तुम्हारे साथ क्या बुरा किय है जो खाने को दौड़ते हो?
- खाक छानना —(दर-दर भटका) — बेरोजगारी इतनी बढ़ गई है कि आजकल खुद्ध पढ़े-लिखे लोग भी दफ्तरों और फैक्ट्रियों की खाक छान रहे हैं ।
- खालाजी का घर —(जहां मनमानी चले) – यह एक सरकारी कार्यालय है। यहाँ के कुछ नियम-कानून हैं, उसी के अनुसार काम करना होगा। इसे ख़ालाजी का घर मत समझा।
- खेल-खेल में —-(आसानी से) – यह मेरे लिए कोई कठिन कार्य नहीं है, इसे तो मैं खेल-खेल में कर सकता हैं।
- खोपड़ी को मान जाना —–(बुद्धि का लोहा मानना) – विरोधी दलों के नेता भी श्रीमती इन्दिरा गाँधी की खोपड़ी को मानते थे।
- खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है —-(देखा-देखी काम करना) —- उमेश का भाई कामचोर है, अतः उसका छोटा भाई भी उसकी देखा-देखी कामचोर बनता जा रहा है। सच ही तो है, खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है।
- खग जाने खग ही की भाषा —-(जो जिस संगति में रहता है, वह उसका पूरा भेद जानता है) —- अपराधी-अपराधी की प्रवृत्ति जानते हैं। ठीक ही कहा है, खग जाने खग ही की भाषा।
- खरी मजूरी चोखा काम —-(नकद और उचित पारिश्रमिक देने से काम अच्छा होता है)- कभी भी मालिक को अपने नौकर से वाद-विवाद नहीं करना चाहिए, समय पर वेतन देकर डटकर काम करवाना ही खरी मजूरी चोखा काम है।
- खूटे के बल बछड़ा कूदे —–(दूसरे के बल पर काम करना) – पावि तान भारत का क्या सामना करेगा, वह तो अमेरिका के बल पर कूदता है। पाकिस्तान पर खूटे के बल बछड़ा कूदे वाली कहावत चरितार्थ होती है।
- खोटा बेटा और खोटा पैसा भी समय पर काम आता है —-(अनुपयोगी वस्तु भी किसी समय काम आती है। बुरी से बुरी वस्तु भी कभी बड़ा काम देती है) — कहावत है खोटा बेटा और खोटा पैसा भी समय पर काम आता है। जिस गोपाल को पूरा गाँव कमचोर एवं बेवकूफ समझता था उसी ने गाँव वालों को सबसे पहले नहर में आयी हुई दरार को बता कर तथा गाँव के लोगों के साथ उसे रोककर गाँव को डूबने से बचा लिया।
- खोदा पहाड़ निकली चुहिया —-(अधिक परिश्रम के बाद साधारण लाभ) – रात-दिन परिश्रम करने के बाद मन वांछित फल न मिलने पर वह बोला-खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
- खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे —–(क्रोधावेश में अटपटा कार्य करना) – जब चुनाव में नेता जी हार गये, तो अफसरों को दोष देने लगे जिससे खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे वाली कहावत चरितार्थ हुई ।
- खेत खाये गदहा मार खाये जुलहा —-(निरपराधी को दण्डित करना) – पुलिस अधिकारी यह जानता था कि.रामदास निर्दोष है, किन्तु उसके विपक्षी द्वारा लम्बी रकम पाकर खेत खाये गदहाः मार खाये जुलहा” को उसने सच कर दिखाया।
- खाने के दाँत और, दिखाने के और —(बाहर-भीतर में बहुत अंतर होना)- समाज के सफेद पोश लोगों का हाथी की तरह खाने के दाँत और दिखाने के और होते हैं। जिससे लोग उनके काले कारनामे न जान पायें ।
- ख्याली पुलाव से पेट नहीं भरता —(केवल कल्पना से ही काम पूरा नहीं होता) – दिन भर शेखचिल्ली की तरह हवाई किले बनाने से काम नहीं चलेगा क्योंकि ख्याली पुलाव से पेट नहीं भरता। पेट भरता है कर्मठ होकर काम करने से ।
- खाई खोदे और को ताको कूप तैयार —-(दूसरों का बुरा चाहने वाले का खुद बुरा होता हैं) – दीन दयाल जी की पत्नी अपनी बहू को कम दहेज लाने के लिए कष्ट एवं ताने दिया करती हैं और वह बेचारी चुपचाप गाय की भाँति सहती हैं। अभी कल की ही बात है उनकी खुद की लड़की शीला, जिसकी शादी उन्होंने इसी वर्ष की थी अपने ससुराल वालों द्वारा प्रताडित होकर वापस अपने घर भेज दी गई उनकी स्थिति ऐसी ही है कि खाई खोदे और को ताको कूप तैयार।।
- खाक डाले चाँद नहीं छिपता —-(अच्छे व्यक्ति की निंदा से उसका कुछ नहीं बिगड़ता) – भ्रष्ट कर्मचारियों के लाख चाहने पर भी ईमानदार अधिकारी का कुछ नहीं बिगड़ेगा क्योंकि खाक डाले चाँद नहीं छिपता।
- खाली बनिया क्या करे, इस कोठी का धान उस कोठी में धरे —-(बेकार आदमी उल्टे-सीधे काम करा रहता है) – रमेश के पास दूसरा कोई काम तो है नहीं, जब देखो तब अपनी घड़ी खोले बैठा रहता है। खाली बनिया क्या करे, इस कोठी का धान उस कोठी में धरे।।
- खुदा की लाठी में आवाज नहीं —-(ईश्वर का दण्ड चुपचाप काम के अनुसार मिल जाता है) – गजानन बाबू के कुकर्मों का ही फल है कि 45 वर्ष की अल्प आयु में उन्हें फालिज मार गया है जिसके कारण वे शय्या पर पड़े रहते हैं। सच ही कहा है, खुदा की लाठी में आवाज नहीं ।
- खुदा गंजे को नाखून न दे/ खुदा गंजे को नाखून नहीं देता —-(नासमझ अधिकार पाकर अपनी ही हानि कर बैठता है) – विधायकजी मंत्री पद मिलते ही घोटाला करने लगे, इसीलिए जल्दी ही हटा दिये गये। सच ही कहा गया है कि खुदा गंजे को नाखून
- खुशामद से ही आमद है —(खुशामद में ही तरक्की है) — आजकल अर्दली और चपरासी से लेकिन आफिस के बाबू लोग तक अपने अधिकारियों की खुशामद में दिन रात लगे रहते हैं क्योंकि खुशामद से ही आमद है।
- खेती, खसम लेती —(कोई काम स्वयं करना ही ठीक रहता है) — पैसे का लेन-देन ही पास रखना चाहिए क्योंकि खेती, खसम लेती।
- खेल खिलाड़ी का, पैसा मदारी का —–(किसी अन्य का लाभ दूसरे को) – कारखाने से कमीशन तो सचिव निकाले पर लाभ मंत्री जी को मिला -मतलब खेल खिलाड़ी का, पैसा मदारी का ।
ग
- गीता का ज्ञान —(पूर्ण ज्ञान होना) – रविशंकर जी को समाजशास्त्र में गीता का ज्ञान प्राप्त है।
- गोवर्द्धन धारण करना –(लोक मंगल के लिए विपत्तियों को ओढ़ लेना) – प्रधान जी ने बाढ़ की सहायता राशि दिलाने में गोवर्द्धन धारण कर लिया था।
- गूलर का पेट फूलना —-(औकात से ज्यादा बात करना) – आजकल सभी जगह गूलर का पेट फूलने लगा है। औकात हो या न हो लेकिन हर आदमी अपने बच्चों को कान्वेन्ट में पढ़ाना चाहता है।
- गले का हार होना —-(अत्यन्त प्रिय होना) — रामानन्द सागर का दूरदर्शन सीरीयल “रामायण” दर्शकों के गले का हार हो गया था।
- गूंगे का गुड़ —-(अकथनीय आनन्द) – प्रेम रस से ओत प्रोत साहित्य रॉ का गुड़ है, जो इसे चखता है वही जानता है।
- गड़े मुर्दे उखाड़ना —-(पुरानी बातों पर प्रकाश डालना) – देख भाई! जो बात हो गयी, सो हो गई, अब गड़े मुर्दे उखाड़ने से क्या लाभ?
- गुल खिलाना —(कुछ नया एवं निन्दनीय कार्य करना) – जानकी दास का बड़ा लडका नित्य कोई न कोई नया गुल खिलाता रहता है।
- गरदन पर छुरी फेरना —(हानि पहुँचाना) – अपने कार्यालय के साथी को निलम्बित कराकर तुमने उसकी गरदन पर छूरी फेर दी है।
- गागर में सागर भरना —(थोड़े में ही बहुत कहना) – बिहारी के बारे में हिन्दी साहित्य का प्रत्येक आलोचक यही कहता है कि उन्होंने गागर में सागर भर दिया है।
- गाढ़े का साथी— (संकट-काल, बुरे समय में सहायता करने वाला) – मनमुटाव होने के बावजूद बाढ़ की विभिषिका में मेरी मदद करने वाला लाल बहादुरगाढे का साथी साबित हुआ कि नहीं?
- गिट की तरह रंग बदलना —-(काम निकल जाने पर प्रतिज्ञा न निभाना, एक बात पर स्थिर न रहना, अवसरवादी) – तुम्हारी बात का कोई भरोसा नहीं क्योंकि तुम तो गिरगिट की तरह रंग बदलते रहते हो।
- गुड़ गोबर होना/गुड़ गोबर करना —-(काम बिगड़ जाना) – उसकी अदूरदर्शी निर्णय के कारण सब गुड गोबर हो गया।
- गोबर गणेश ——(मूर्ख) — पूरा गोबर, गणेश है। उसकी मोटी बुद्धि में कुछ नहीं आता
- गले का हार —–(अत्यन्त प्रिय) – इतने बड़े परिवार में एक छोटू ही ऐसा है जो सबके गले का हार है।
- गीदड़ भभकी —-(झूलभूत डराना) – हम सब तुम्हारी असलियत जानते हैं इसलिए तुरी गीदड़ भभकीयों से डरने वाले नहीं।
- गाल बजाना —(बकवास करना) – उसके गाल बजाने से हम सब परेशान हैं।
- गुदडी का लाल/गुदड़ी में लाल —(साधारण वस्तु में अनमोल पदार्थ का छिपा रहना) – एक साधारण परिवार में जन्म लेकर प्रधानमत्री के प्रतिष्ठित पद तक पहुँचने वाले लाल बहादुर शास्त्री गुदड़ी के लाल थे।
- गरीबी में आटा गीला होना —(विपत्ती में और विपत्ती का आना) – महीने के अंत में जब उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी उसी समय मेहमानों के आ जाने पर उसके मुँह से अनायास निकल गया-गरीबी में आटा गीला।
- गजब ढाना —(आश्चर्यजनक काम करना, आशतीत कार्य करना) – उसने आज थियेटर में शो के दौरान अपने अभिनय द्वारा गजब ढा दिया।
- गज-भर की छाती होना –(अत्यधिक गर्व का अनुभव करना) – अपने भाई को जिलाधीश की कुर्सी पर बैठे देखकर उसकी छाती गज-भर की हो गयी।
- गठरी काटना –(अनीति ढंग से कमाई करना) – स्टेशन पर लड़के रोज एककी गठरी काटते हैं।
- गड्ढे में गिरना —(पतित होना) – चारित्रिक दृष्टि से अब तो वह पूरी तरह गड़े में गिर चुका है।
- गप्पें लड़ाना —(बेकार की बाते करना) — वह हमेशा पान की दुकान पर बैठकर गणे लड़ाता रहता है।
- गरदन उठाना —-(प्रतिवाद करना) – पाकिस्तान में प्रत्येक प्रान्त अपनी स्वतन्त्रता के लिए गरदन उठाने लगा है।
- गरदन काटना —-(हानि पहुँचाना) – उसने मेरे उच्चाधिकारी से मेरी शिकायत कर मेरी गरदन काट दी।
- गरदन फँसाना —-(सकट में पड़ना) – उसने खुद ही ऐसा कार्य किया कि उसकी गरदन हमेशा के लिए फेस गई।
- गरम होना —(नाराज होना) – तुम तो व्यर्थ में ही गरम हो रहे हो तुम्हारा इससे क्या लेना देना।
- गले मढ़ना —(इच्छा के विरुद्ध) – जय प्रकाश ने अपनी एकदम पुरानी जर्जर स्कूटर रंगा पुता कर एवं सस्ती बताकर मेरे गले मढ़ दी
- गले लगाना —(अपनाना स्वीकार करना) – गाँधी जी ने हरिजनों को गले लगा लिया।
- गाँठ काटना —(वगना) – गाड़ी से उतरने ही उचक्कों ने उसके ब्रीफकेस की गाँठ काट दी।
- गिन-गिन कर पैर रखना —-(सावधानी बरतना) प्रतियोगिता के इस दौर में गिन-गिनकर पैर रखने वाला ही सफल हो रहा है।
- गिन-गिन कर दिन काटना —–(कष्टमय जीवन व्यतीत करना) – नौकरी छूटने के बाद वह अपने दिन गिन-गिन कर काट रहा है।
- गुस्सा पीना —-(क्रोध को पी लेना, व्यक्त न करना) – कुछ परिस्थितियों में गुस्सा व्यक्त करने से श्रेयस्कर गुस्सा पी जाना होता है।
- गूलर का फूल होना/हो जाना —-(न दिखायी पड़ना) – आज के युग में लक्ष्मण जैसा भाई मिलना, गूलर के फूल के समान है।
- गन्ध तक न आना —-(प्रकट न होना) – उसने मकान की रजिस्ट्री इस तरह कराई कि पड़ोसियों को गन्ध तक न आई ।
- गुड़ देकर मारना —–(कपट स्नेह दिखाकर विश्वासघात करना) – आज समाज में कुछ ऐसे स्वार्थी लोग हैं जो गुड़ देकर मारने में जरा भी नहीं हिचकते।।
- गंगा नहाना –(कठिन कार्य पूरा करके छुट्टी पाना) – बेटी की शादी करके, पारिवारिक दायित्व से हम तो गंगा नहाए।
- गढ़ जीतना —-(बहुत कठिन काम करना) – तमाम अड़चनों के बावजूद यह मकान बनवाकर मैंने गढ़ जीत लिया।
- गले पड़ा ढोल बजाना —(सिर पर पड़ी जिम्मेदारी को मजबूरन पूरा करना) – मैं यह मुकदमा हाथ में नहीं लेना चाहता था, पर अब तो गले पड़ा ढोल बजाना ही पड़ेगा।
- गहरा हाथ मारना —-(बहुत कुछ हसिल करना) – जीवन लाल ने वसीयत: द्वारा भाई की संपत्ति पर गहरा हाथ मारा है।
- गाँठ का पूरा —-(धनी) – धर्मेन्द्र का साला है तो गाँठ का पूरा, पर है बिल्कुल बुद्ध।
- गाँठ बाँधना —-(खूब याद रखना) – मेरी बात गाँठ बाँध लो ऐसे लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए जो हर समय चापलूसी की बात करते हों।
- गाजर मूली समझना —(तुच्छ सम्झना) – मेरे भी हाथ बहुत लम्बे हैं। मुझसे टकराने की कोशिश भी मत करना और याद रखो मुझ जैसे लोगों को गाजर मूली मत समझना।
- गाल फुलाना —(रूठना) – मीना ने अपनी सास से कहा, “माताजी मैं क्या करूँ, -रा सी बात पर वे गाल फुला लेते हैं।
- गेहूँ के साथ घुन पिस जाना —(दोषी के साथ निर्दोष का भी अहित होना) – अब भी समय है, रंजीत जैसे अपराधी का साथ छोड़ दो वरना वह तो जेल जायेगा ही, तुम भी गेहूँ के साथ घुन की तरह उसके साथ पिस जाओगे।
- गोटी बैठना/गोटी बैठामा —(युक्ति सफल होना)- जनार्दन सिंह ने ब्लाक में साथियों के साथ ऐसी गोटी बिठाई कि वे ब्लाक प्रमुख बन गये।
- गोल कर जाना –(गायब कर देना) – इन्टरव्यू देते समय फिल्म अभिनेता अभिषेक बच्चन इधर-उधर की बातें करता रहा, पर शादी के विषय में मेरे प्रश्न का उत्तर गोल कर गया।
- गंगा गये गंगादास, जमुना गये जमुना दास –(अवसर-वादिता) – कुछ लोगों की आदत होती है कि उनके सामने जो व्यक्ति आता है, उसी की प्रशंसा करने लगते हैं, ऐसे लोगों के लिए ही कहा जाता है-गंगा गए गंगा दास, जमुना गये जमुना दास ।।
- गाय को अपनी सींग भारी नहीं होती/लगती —(अपने कुटुम्बी किसी को कष्टदायक नहीं जान पड़ते) – आपके सपरिवार आ जाने से हमें कोई तकलीफ नहीं होगी, क्योंकि गाय को अपनी सींग भारी नहीं होती।
- गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है —(बुरे के साथ नेक भी बरबाद या बदनाम होता है) – कुख्यात बदमाश हीरा यादव के साथ उठने बैठने के कारण पुलिस मोहन को भी पड़ ले गयी क्योंकि गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है।
- गुड़ न दे तो गुड़ की बात तो करे —-(किसी को कुछ न दे तो मीठी बात तो करे) — राजेश का दिमाग हमेशा सातवें आसमान पर रहता है। न जाने उसे किस बात का घमण्ड है जो वह किसी से सीधे मुँह बात नहीं करता। सच ही कहा गया है गुड़ न दे तो गुड़ की बात तो करे।
- गये रोजा छुड़ाने नमाज गले पड़ी –(सूख-प्राप्ति के लिए परेशान होने पर दुःख को पीछे पड़ जाना) – वह अपने उच्चाधिकारी के यहाँ रात की ड्यूटी से मुक्ति की प्रार्थना करने गया था लेकिन कुछ सिपाहियों के छट्टी पर होने के कारण उस पर रात और दिन दोनों की जिम्मेदारी डाल दी गयी । गए थे रोजा छुड़ाने नमाज गले पड़ी।
- गुड खाय, गुलगुलों से परहेज —(एक काम करना और उसी से सम्बन्धित दूसरे काम को करने में हिचक होना) – स्वामी जी प्याज नहीं खाते, परन्तु प्याज की बनी पकौड़ियाँ खा लेते हैं, ऐसे ही लोगों के लिए कहा गया है-गुड खाय, गुलगुलों से परहेज ।
- गॅजेडी यार किसके दम लगा खिसके —-(स्वार्थी व्यक्ति स्वार्थ के लिए साथ होता है। स्वार्थ सिद्ध होते ही वह मुँह फेर लेता हैं) – विपिन ने तो विद्यालय में प्रवेश हो जाने के बाद से ही इधर आना छोड़ दिया। मॅजेड़ी यार किसके दम लगाया खिसके।
- गॅवार गन्ना न दे भेली दे —(गॅवार सिधाई से कम मूल्य की वस्तु न देकर अधिक मूल्य की वस्तु दे देता है) – गॅवार दुकानदार ने दो रुपये का आम माँगने पर देने से मना कर दिया लेकिन दो रुपये का अमावट माँगने पर दस रुपये के आम का बना अमावट देकर अपनी मूर्खता दर्शा कर गॅवार गन्ना न दे भेली दे वाली कहावत चरितार्थ कर दी।
- गयी माँगने पुत खो आई भरतार (थोडे लाभ के चक्कर में अधिक नुकसान) – छात्रवृत्ति के पैसे में छात्रों से कमीशन लेने के कारण कार्यालय के लिपिक को निलम्बित कर दिया गया। यह तो वही बात हुयी कि गयी माँगने पूत खो आई भरतार ।
- गरीब की जोरु सब की भौजाई/भाभी —-(कमजोर से सब लाभ उठाते हैं) — त्रिभुवन नाथ की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण वह सबकी अच्छी-बुरी सुनता है और सब उसका शोषण करते हैं क्योंकि कहावत है गरीब की जो सब की भौजाई हुआ करती है।
- गरीबों ने रोजे रखे तो दिन बड़े हो गये —-(निर्धन का भाग्य बुरा होता है)- पूरे महीने मजदूरी करने के बाद जब पैसा मिलने का समय आया तो ठेकेदार गरीबों का पैसा हड़प कर भाग गया। मजूदरों को न तो पैसा मिला और न ही उन्हें काम पर रखा गया। उनका हाल गरीबों ने रोजे रखे लो दिन बड़े हो गये जैसा हो गया।
- गुड़ दिये मरे तो जहर क्यों दें ? —(प्रेम से काम निकल सके तो सख्ती नहीं करनी चाहिए) – यदि आप हमारा काम कर देंगे, तो अधिकारी से कहने की क्या जरूरत है? गुड़ दिये मरे तो जहर क्यों दें ?
- गोद में बैठकर आँख में उँगली/गोदी में बैठकर दाढ़ी नोचना —(भलाई के बदले बुराई) – जटाशंकर जी के घर में किराये पर रहने वाले कृन विश्वविद्यालय के छात्र ने उन्हीं की बेटी को साथ भगाकर गोद में बैठकर-आँख में उँगली वाली कहावत सच कर दी।
- गागर में अनाज, गॅवार का राज —(मूर्ख थोड़े में इतरा जाते हैं) – मनोहर श्याम ने जीतेन्द्र मोहन से कहा, पचाकर खाना सीखो। दो पैसे क्या कमा लिये कि दुनिया ही भूल गये। सच ही कहा है “गागर में अनाज, गॅवार का राज”।
- गोद में लड़का/छोरा शहर में ढिंढोरा —(वस्तु पास में हो लेकिन उसकी तलाश दूर तक हो) — नालन्दा सामान्य ज्ञान की पुस्तक में शहर भर में ढूँढ आया नहीं मिली। अंत में मिली तो पड़ोस की किताब की दुकान में, इसी को कहते हैं गोद में लड़का शहर में ढिंढोरा।।
- गुरु कीजै जान, पानी पीजै छान —(जाँच पड़ताल कर कोई काम करना) – देखो जल्दबाजी में कोई काम न कर बैठना, बुजुर्गों ने ठीक ही कहा है-गुरु कीजै जान, पानी पीजै छान।।
- गुरु गुड़ ही रह गया चेला शक्कर हो गया —(गुरु से चेले का बढ़ जाना) – मोहन के चेले को कुश्ती में आगे बढ़ते देख लोगों ने कहा गुरु गुड़ ही रह गया चेला शक्कर हो गया।
- गाछ/पेड़ पे कटहल, ओठ में तेल —(काम होने के पहले ही फल की इच्छा खयाली पुलाव पकाना) – विक्रम काम पूर्ण होने के पहले ही उसके आगे की सोचने लगता है। उसका तो वहीं हाल है कि “गाछ पे कटहल, ओठ में तेल” ।
- गवाह चुस्त, मुई सुस्त —(जिस का काम वह देर करे, दूसरा फुर्ती दिखाये) – काम तुम्हारा है और मैं यहाँ आकर इतनी देर से तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूँ। यह तो वही कहावत हुई कि गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त।
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- घड़ों पानी पड़ना –(अत्यन्त लज्जित होना) – चोरी करते रंगे हाथ पकड़े जाने पर उस पर घड़ों पानी पड़ गया।
- घाव पर नमक छिड़कना —(सताये को और सताना) – कम दहेज लाने के ताने सुनकर बहू पहले ही बहुत दुःखी है। अब उसे और उलाहने देकर क्यों उसके घाव पर नमक छिड़कती हो?
- घाट-घाट का पानी पीना —(संसार का अनुभव प्राप्त करना) – मुझे किसी मामले में कम मत आँकों, मैंने भी घाट–घाट का पानी पिया हैं।
- घास काटना —(कार्य को ठीक ढंग से न करना) – इन दरवाजों पर रंग-रोगन जरा कायदे से करो, यह नहीं कि घास काट कर चलते बनो।
- घास छीलना —(व्यर्थ समय खोना) – गम्भीर होकर परीक्षा की तैयारी करो, दोस्तों के साथ घास छीलने से नौकरी नहीं मिलेगी।
- घुटने टेक देना —(आत्म-समर्पण करना) – भारतीय सीमा पर हमारे जवानों की कुशल घेराबन्दी ने दुश्मनों को कई बार घुटने टेक देने को मजबूर किया है।
- घात लगाना (अवसर की तलाश करना) — मैंने घात लगा रखी है। समय आने दो, उसे मैं खुद ही रास्ते से हटा दूंगा।
- घोड़े बेचकर सोना —(निश्चिन्त होना) – उसकी परिक्षायें समाप्त हो गई हैं, इसलिए वह घोड़े बेचकर सो रहा है।
- घर उजड़ना ——-(गृहस्थी का नष्ट होना, घर में किसी प्रकार की व्यवस्था न होना) – बाढ़ की विभीषिका में न जाने कितने लोगों के घर उजड़ गये।
- घोड़े पर चढ़े आना —(उतावली में आना) – थोड़ा धैर्य रखकर आया करो यहाँ हर काम नियमपूर्वक होता है। घोड़े पर चढ़े आने से कभी काम नहीं होगा।
- घर काटने को दौड़ना —(दिल न लगना, सूनापन अखरना) – इकलौती बेटी सीमा की शादी के बाद मानों घर काटने को दौड़ता है।
- घर करना —(पूरी तरह से रच-बस जाना) – उसका प्रदर्शन देखने के बाद ही से उसकी कला ने मेरे अन्दर घर कर लिया है। |
- घुन लगना —(बेकार हो जाना) – निरन्तर अभ्यास से संगीत या कोई और हुनर निखरता है वर्ना हुनर को घुन लग जाता है।
- घर-घर पूजा होना —-(सर्वत्र सम्मान मिलना) – अटल बिहारी बाजपेयी के निर्वाचन क्षेत्र लखनऊ में घर-घर उनकी पूजा होती है।
- घर बैठे गंगा आना/घर में गंगा बहना —(अनायास लाभ) – राघव की लाटरी के रुपये मिल जाने से, उसके घर बैठे गंगा आ गई।
- घर का आदमी —-(घनिष्ठ, आत्मीय) – आपसे क्या छुपाना, आप तो घर के आदमी हैं।
- घर की खेती —-(अपनी चीज) – दाढ़ी-मूंछों को देखकर नाराज मत होना,घर की खेती है, जब चाहे बड़ा या बना ली।
- घर में भेजी भाग न होना (कगाल होना) – उससे क्या चंदा माँगते हो उसके घर में भेजी भॉग भी नहीं हैं।
- घी के दीये जलाना —-(अत्यन्त प्रसन्न होना) – पुत्र की नौकरी के बाद अब उसके घर में घी के दिये जलते हैं।
- धाव हरा होना/हो जाना —-(विस्मृत दुख की याद, दुख का ताजा होना) – उन पुरानी कड़वी बातों की चर्चा छेडकर तुमने मेरा घाव हरा कर दिया।
- घुल मिल जाना —-(एक हो जाना) – होली त्योहार ऐसा अवसर है जब लोग आपसी रंजिश भूलकर आपस में घुल-मिल जाते हैं।
- घुटा हुआ –(बहुत चालक, अनुभवी) – उसे धोखा देना आसान नहीं है क्योंकि वह बहुत ही घुटा हुआ है। ह
- घोट कर पी जाना —-(एक-एक अक्षर याद कर लेना, सम्पूर्ण नष्ट कर देना—-(i) परीक्षा के दिनों में नीतू पुस्तक को घोंट कर घी जाती है। (ii) मैं इतना कमजोर नहीं हैं कि मुझे घोट कर पी जाओगे।
- घुघंट की लाज —(सतीत्व की मर्यादा)- आज उसने गुंडों से जमकर मुकाबला करते हुए अपने घुघंट की लाज रख ली।
- घिग्घी बँधना —(डर के मारे बोल न पाना) – पुलिस लॉकअप में अच्छे-अच्छे की घिग्घी बँध जाती है।
- घोड़े के आगे गाड़ी रखना —(उलटा कार्य करना विरुद्ध गामी) – तुम्हारे जैसे शिक्षित एवं योग्य व्यक्ति से मैं उम्मीद नहीं करता था कि घोड़े के आगे गाड़ी रखोगे ।
- घोघा बसन्त —(मूर्ख) – मूल चन्द का छोटा लड़का बिल्कुल घोघा बसन्त है।
- घड़ियाँ गिनना —(बेचैनी से इन्तजार करना) – किशोरी लाल को देखकर जब सभी डॉक्टरों ने जवाब दे दिया, तब घरवाले मौत की घडियाँ गिनने लगे।
- घर का न घाट का —(कही का नहीं) – मैने गुस्से में अपना घर छोड़कर गलती की थी। किसी ने मुझे सहारा नहीं दिया अब न मैं घर का रहा न घाट की।
- घर फेंक तमाशा देखना –(अपना नुकसान करके मौज उड़ाना) – वह इतना मूर्ख नहीं है जो अपना घर फेंक तमाशा देखे।
- घी खिचड़ी होना —(खूब मिलजुल जाना) – तुम लोग आपस में क्यों झगड़ते रहते हो? पड़ोसियों को घी खिचड़ी होकर रहना चाहिए।
- घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध —(घर का मनुष्य चाहे कितना ही योग्य क्यों न हो, उसकी प्रतिष्ठा नहीं होती अपने लोगों का आदर न करके दूसरों को श्रद्धास्पद समझना) – मेरे पड़ोसी ज्योतिषाचार्य जी से बाहरी लोग परामर्श लेने दूर-दूर से आते हैं परन्तु घर के लोग मुहूर्त तिथि, व्रत की जानकारी आदि मंदिर के पुजारी से पूँछने जाते हैं, सच है, घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध।
- घर का भेदी लंका ढावे —–(आपसी फूट अत्यधिक हानिकारक होती है) – इतिहास गवाह है कि जब जब भारत गुलाम हुआ है उसके पीछे कोई न कोई जयचन्द या मीर
- घर खीर तो बाहर भी खीर —(धनवान की इज्जत सब करते हैं। सम्पन्नता में सर्वत्र प्रतिष्ठा मिलती है) – इस में वास्तविकता है कि पेट भरा रहने पर ही लोग खाने को पूछते हैं। वहीं यदि पेट खाली हो तो बाहर भी ऐसा होता है कि लोग खाने को नहीं पूछते। इसी पर कहावत है घर खीर तो बाहर भी खीर।
- घोड़ा ‘घास से यारी करे तो खाये क्या?/घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या? –(धन्धे में रियायत श्रेयष्कर नहीं) – जो जिस वस्तु का व्यापार करता है, उसमें लाभ न ले तो उसका खर्च कैसे चले? इसीलिए कहा गया है कि घोड़ा घास से यारी करे तो खाए क्या?
- घड़ी में तोला : घड़ी में मासा/पल में तोला पल में मासा —(अव्यवस्थित, क्षणभंगुर स्वभाव का व्यक्ति)- अपका मन चंचल है आप कभी आगरा जाने की बात करते हैं तो कभी वाराणसी। मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा, आपका मन तो डी में तोला घड़ी में मासा है।
- घर आये नाग न पूजिये, बॉबी पूजन जायें —(सुलभ मार्ग को छोड़कर टेढे मार्ग को ग्रहण करना) – घर के बगल में दारागज का घाट है जहाँ आप कभी गंगा स्नान करने नहीं गये लेकिन अंगवेरपुर जाकर आपका श्रावण महिने में गंगा स्नान “घर आये नाग न पूजिये, बॉबी पूजन जाय” वाली उक्ति को चरितार्थ करता है।
- घड़ी में घर जले नौ घड़ी भद्रा —(समय पर काम न हुआ तो उसका होना न होना बराबर है) – लेखक की पत्नी मरी पड़ी थी। लेखक कफन तक नहीं दे सकता था अपनी पत्नी को। जब वह अपने प्रकाशक से कुछ रुपये की याचना करने लगा तब प्रकाशक ने ‘कल’ आने के लिए कहा। कल का रुपया किस काम आता-घड़ी में घर जले, नौ घड़ी भद्रा ।
- घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते —-(घर आने वाले का आदर सत्कार करना चाहिए – आपको उसे इस तरह से दुत्कारना नहीं चाहिए था क्योंकि घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते ।
- घर की खाँड किरकिरी लगे पड़ोसी का गुड मीठा (अपनी चीज बुरी लगना, दूसरे की अच्छी) – शिवशंकर शर्माजी हमेशा अपनी पत्नी से पडोसिन की बड़ाई करते नहीं थकते थे। शर्मा जी की पत्नी एक दिन कुढ़कर बोली सभी मर्दो का एक सा हाल है, घर की खाँड़ किरकिरी लगे पड़ोसी का गुड मीठा”।
- घर पर घोड़ा, नखास मोल —(घर में वस्तु का होना मंडी में उसे खरीदना) – इस बार इतनी अरहर पैदा हुई है फिर भी आप दाल खरीदकर वही हाल कर दिए कि घर पर घोड़ा, नखास मोल।
- घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने —(योग्यता एवं सामर्थ्य न होने पर भी बढ़-चढ़ कर बातें करना) — यद्यपि भारत स्वयं अभाव की स्थिति में है तथापि वह पड़ोसी देशों की आर्थिक सहायता को तत्पर है फिर भी भारत के लिये यह नहीं कहा जा सकता कि घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने क्योंकि भारत के पास प्रचुर साधन है जिनका सदुपयोग करके भारत खुद भी आत्मनिर्भर हो सकता है तथा पड़ोसियों की भी सहायता कर सकता है।
- घड़ी में घर जले, अढाई घड़ी मन्दा —-(विषम परिस्थिति में बुद्धि का प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए) – समय को बनते बिगड़ते देर नहीं लगती। आदमी वही है जो आड़े वक्त में बुद्धि से समय बिताये। कहावत भी है-घड़ी में घर जले, अढाई घड़ी मन्दा।
- घर की मुर्गी साग/दाल बराबर —-(अपने घर के गुणी व्यक्ति का सम्मान न करना) – डॉ० अमर्त्य सेन को जब अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ तो उन्हें भारतीय मूल का कहा जाने लगा हालांकि कल तक जब वे भारत में थे तो उनका कोई उचित सम्मान नहीं था। उनकी अवस्था घर की मुर्गी साग बराबर के समान थी।
- घी सँवारे काम, बड़ी बहू का नाम —(काम साधन से हो लेकिन यश करने वाले का हो) – चावल मिल से बढ़िया किस्म का चावल खरीद कर आपने जो दिया उसी से उसका गुणगान हो रहा है। घी सँवारे काम बड़ी बहू का नाम।
- घोड़े की दुम बढ़ेगी तो अपनी मक्खियाँ उड़ायेगा —-(प्रगति करके व्यक्ति अपनी ही भलाई करता है) – मंत्री बनकर स्वरूप जी ने अपने ही सगे-संबन्धियों को सरकारी नौकरियों में स्थान दिलाकर “घोड़े की दुम बढ़ेगी तो अपनी मक्ख्यिाँ उड़ायेगा” वाली कहावत चरितार्थ कर दी।
- घोड़े को लात, आदमी को बात —-(दुष्ट से कठोरता और सज्जन से नम्रता का व्यवहार) – थानेदार ने मोहल्ले के संभ्रान्त लोगों को समझाकर लौटा दिया और दंगाइयों को जेल में बन्द करके घोड़े को लात आदमी को बात वाली कहावत चरितार्थ कर दी।
- घोड़ों का घर कितनी दूर —(कर्मठ व्यक्ति अपने काम में देरी नहीं लगाता) – इतने कम समय में धर्मेन्द्र ने परीक्षा की तैयारी करके और उसमें प्रथम स्थान प्राप्त करके ‘घोड़ों का घर कितनी दूर?’ वाली कहावत को सिद्ध कर दिया।
- घायल की गति घायल जाने —-(कष्ट सहने वाला ही दूसरों के कष्ट को समझ सकता है) — धर्म विजय के परिवार को परेशानी में देखकर रविशंकर को अपने दिन याद आ गये और वे उसे त्तकाल सहायता करने पहुँच गये। सच ही है- घायल की गति घायल जाने।
- घर-घर देखा, एक ही लेखा ——(सबकी एक ही दशा) – आज के स्वार्थी युग में हर परिवार में कलह है- घर-घर देखा एक ही लेखा।।
- घर पर फूस नहीं नाम धनपत —-(निरर्थक नाम) – हरिभजन का नाम ही केवल हरिभजन है, हरि के भजन से इनका कोई वास्ता नहीं है। “घर पर फूस नहीं, नाम धनपत” वाली कहावत यहाँ चरितार्थ है।
- घर में दिया जलाकर मस्जिद में दिया जलाना —-(पहले स्वार्थ और तब परमार्थ) – यह तो जग की रीति है, पहले स्वार्थ और तब परमार्थ, कहावत भी है घर में दिया जलाकर मस्जिद में दिया जलाया जाता है।
- घी का लड्डू टेढ़ा भी भला —(अच्छी वस्तु का रूप-रंग नहीं देखा जाता) – रोहित के यहाँ काने लड़के का जन्म हुआ है फिर भी वह खुश है क्योंकि घी का लड्डू टेढ़ा भी भला।
- घी कहाँ गिरा? खिचड़ी में —(अपनी वस्तु का स्वयं के प्रयोग में लाना) – अन्नपूर्णा सोसाइटी के सदस्य घूमाफिरा के अपने ही परिवार के लोगों को लाभ पहुँचाते हैं। यह तो वही कहावत हुई कि घी कहाँ गिरा? खिचड़ी में।
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